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परमार्थ निकेतन में आयोजित माँ शबरी रामलीला का हरित संकल्प के साथ भव्य समापन

कमल अग्रवाल( हरिद्वार )उत्तराखंड

ऋषिकेश* भारतीय संस्कृति और धर्म परंपरा की अद्भुत झलक के दर्शन कराने वाली माँ शबरी रामलीला का भव्य आयोजन परमार्थ निकेतन में संपन्न हुआ। इस अद्वितीय आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम का समापन स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में हुआ। रामलीला के पात्रों ने विश्व विख्यात परमार्थ गंगा आरती में सहभाग कर इस उत्सव को और भी दिव्य बना दिया।

यह कार्यक्रम परमार्थ निकेतन और सुरेन्द्र बक्शी आरोग्य सेवा फाउंडेशन (सैस) के तत्वाधान में आयोजित किया गया। यह भारत की पहली रामलीला है, जो विशेष रूप से वनवासियों, जनजातियों और आदिवासियों को समर्पित है। रामलीला के प्रत्येक दृश्य ने भारतीय वनवासी, जनजाति और आदिवासी संस्कृति की अद्भुत झलक प्रस्तुत की और दर्शकों को उनकी जीवनशैली, संघर्ष और आध्यात्मिक मूल्य समझने का अवसर दिया।

आज के समय में, जब तकनीक और आधुनिक जीवन शैली के युग में युवा पीढ़ी धर्म, संस्कृति और सामाजिक मूल्यों से धीरे-धीरे दूरी बना रही है, ऐसे में रामलीला जैसे कार्यक्रम अत्यंत आवश्यक हो जाते हैं। रामलीला हमारे भीतर संस्कारों, आदर्शों और नैतिक मूल्यों को स्थापित करने का श्रेष्ठ माध्यम है। माँ शबरी रामलीला के पात्रों ने उन दिव्य चरित्रों के माध्यम से यह संदेश दिया कि जीवन में कठिनाइयों का सामना धैर्य, भक्ति और धर्म के मार्ग पर चलकर ही करना चाहिए।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि रामलीला हमारे समाज, संस्कृति और जीवन मूल्यों का जीवंत दर्पण है। धर्म, भक्ति और नैतिकता केवल कथाओं में नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक पहलू में अनिवार्य हैं। रामलीला हमें यह संदेश देती है कि सत्य, न्याय और धर्म के मार्ग पर चलना ही जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य है। माँ शबरी का चरित्र धैर्य, निष्ठा और अटूट भक्ति का प्रतीक है, जो दर्शाता है कि कठिन परिस्थितियों में भी ईश्वर में अटल विश्वास बनाए रखना आवश्यक है।

स्वामी जी ने कहा कि रामलीला, समाज को एकजुट करती है। यह हमें सहयोग, सहिष्णुता और सामाजिक जिम्मेदारी के महत्व को समझाती है। रामलीला हमारे सनातन धर्म और परंपराओं की जीवंत धरोहर है। यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी संस्कार, संस्कृति और श्रीराम जी के आदर्शों को स्थापित करती है। रामलीला दर्शकों के हृदय में नैतिकता, भक्ति और सामाजिक चेतना का बीज बोती है और हमारे जीवन को दिशा और गरिमा प्रदान करती है।

हमें हमारे मूल्यों और संस्कारों से जोड़ती है। आधुनिक जीवन की भाग-दौड़ में हम अक्सर अपने नैतिक मूल्यों और आध्यात्मिक जागरूकता से दूर हो जाते हैं। ऐसे समय में रामलीला हमें यह याद दिलाती है कि जीवन में धर्म, भक्ति और सत्य के आदर्शों का पालन करना आवश्यक है। मां शबरी रामलीला ने दिलों पर अमिट छाप छोड़ी है।

सैस फाउंडेशन के अध्यक्ष श्री शक्ति बक्शी जी ने कहा कि पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के के पावन सान्निध्य में परमार्थ निकेतन में मां शबरी रामलीला का आयोजन प्रभु के आशीर्वाद के समान है। मां गंगा जी के पावन तट पर पूज्य स्वामी जी के सान्निध्य में सैस फाउंडेशन की पूरी टीम और सभी पात्रों को विलक्षण शान्ति व आनंद का अनुभव हुआ। मां गंगा के तट पर रामलीला करना ही अपने आप में एक महोत्सव है।

इस वर्ष की रामलीला में हरित संकल्प को विशेष रूप से महत्व दिया गया। पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी के संदेश को रामलीला के माध्यम से सभी दर्शकों तक पहुँचाया गया। मां शबरी रामलीला के समापन अवसर पर सैस फाउंडेशन के अध्यक्ष श्री शक्ति बक्शी जी, श्री विश्व मोहन जी और पूरी टीम को रूद्राक्ष का पौधा भेंट कर उनका अभिनन्दन किया।

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