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परमार्थ निकेतन गंगा जी की आरती इन दिव्य विभूतियों को समर्पित

कमल अग्रवाल (हरिद्वार )उत्तराखंड

ऋषिकेश/ आज का दिन भारत की महान विरासत, त्याग, तपस्या और राष्ट्रनिर्माण की अद्भुत गाथाओं को स्मरण करने का पावन अवसर है। आज स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, विश्वप्रसिद्ध हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद जी तथा देश के वीर क्रांतिकारी खुदीराम बोस जी के पावन स्मरण और उनकी देशभक्ति को नमन करने का दिव्य अवसर है।

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और डिवाइन शक्ति फाउंडेशन की अध्यक्ष साध्वी भगवती सरस्वती जी ने विश्व शान्ति यज्ञ में विशेष आहुतियां समर्पित कर तीनों विभूतियों को श्रद्धापूर्वक भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित की।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी की 141वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये कहा कि वे भारतीय संस्कृति और विनम्रता के शिखर पुरुष थे। वे केवल भारत के प्रथम राष्ट्रपति ही नहीं, भारतीयता के जीवंत प्रतीक थे। उनका जीवन सादगी, सेवा, समर्पण और राष्ट्रधर्म की अनुपम मिसाल था। वर्ष 1954 में जब वे परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश पधारे, तब उनकी दिव्य सात्विकता, सहजता और विनम्रता ने सभी के हृदय स्पर्श किया।

उनके आगमन में न कोई दिखावा था, न कोई औपचारिकता, केवल सहजता, सरलता और सात्विक तेज। वे जैसे ही आश्रम में प्रविष्ट हुए, उनके विनम्र व्यवहार, कोमल वाणी और संत-सदृश आचरण ने सभी संतों, साधकों और श्रद्धालुओं के हृदय को स्पर्श किया। उस दिवस को परमार्थ निकेतन आज भी दिव्य स्मृति की तरह संजोए हुए है।

उनकी वाणी में भारतीय संस्कृति का तेज था और आचरण में गीता का गूढ़ संदेश समाहित था। देश के संविधान निर्माण से लेकर राष्ट्रपति पद की मर्यादा तक, हर स्थान पर उन्होंने केवल राष्ट्र को सर्वोपरी रखा। आज उनकी जयंती पर हम उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके जीवन से प्रेरित होकर संकल्प लें कि हम भी देश, धर्म, संस्कृति और मानवता के लिए समर्पित रहेंगे।

आज ही के दिन ‘पद्म भूषण’ मेजर ध्यानचंद जी की पुण्यतिथि भी हैं, जिनके स्टिक में मानो जादू बसता था। हॉकी के इतिहास में ऐसा कौशल, ऐसा अनुशासन और ऐसा समर्पण बहुत कम देखने को मिलता है। उन्होंने अपने खेल के माध्यम से पूरी दुनिया में भारत का सम्मान बढ़ाया।

उनका जीवन बताता है कि खेल केवल खेल नहीं वह राष्ट्र की प्रतिष्ठा, युवा शक्ति का मार्गदर्शन और आत्मविश्वास का आधार है। उनकी स्मृति में युवा शक्ति यह प्रण लें कि भारत को खेलों के क्षेत्र में पुनः विश्वगुरु बनाने के लिए हम आगे आयेंगे। आज की युवा पीढ़ी कोे प्रेरित करें, उन्हें अवसर दें और खेलों को जीवनशैली का अंग बनाएँ।

आज अमर क्रांतिकारी खुदीराम बोस जी की जयंती भी है, वह अमर युवा जिन्होंने अपने मात्र 18 वर्षों के जीवन में ऐसा साहस, ऐसा देशप्रेम और ऐसा बलिदान दिखाया कि वे सदा-सदा के लिए भारत माता के अमर सपूत बन गए। उनकी मुस्कुराती शहादत आज भी हर भारतीय के हृदय में जोश भर देती है। उनका संदेश स्पष्ट था “देश सबसे ऊपर है”.। स्वतंत्रता केवल एक इतिहास नहीं, बल्कि एक दायित्व है। हम सब मिलकर भारत को समृद्ध, सुरक्षित, संस्कारित और आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प लें यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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