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श्री गणेश उत्सव सांस्कृतिक और सामाजिक जागरण का पर्व * स्वामी चिदानन्द सरस्वती

कमल अग्रवाल (हरिद्वार) उत्तराखंड

ऋषिकेश * परमार्थ निकेतन से श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ। विघ्नहर्ता, मंगलकर्ता, सिद्धिदाता भगवान श्री गणेश भारत की प्रज्ञा, रिद्धि, सिद्धि और समृद्धि में निरंतर वृद्धि करें। परमार्थ निकेतन में वेदमंत्रों व शंख ध्वनि के साथ श्री गणेश जी का पूजन-अर्चन किया।

श्री गणेश जी को आद्य देव हैं, वे प्रथम पूज्य हैं। उनके बड़े मस्तक से तात्पर्य उच्च और व्यापक विचारधारा। छोटी सूँड़ बताती है कि जीवन की छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना भी उतना ही आवश्यक है। उनके बड़े कान सुनने की क्षमता, बड़े पेट सहनशीलता और एकदंत सत्य की एकता का प्रतीक हैं। उनका वाहन मूषक यह शिक्षा देता है कि विनम्रता और आत्मसंयम से सबसे छोटा प्रयास भी महान कार्य का साधन बन सकता है।

गणपति बप्पा हमें संदेश देते हैं कि कठिनाइयाँ जीवन का अंग हैं परंतु जब हम धैर्य, प्रज्ञा और विवेक से निर्णय लेते हैं तो हर विघ्न दूर हो जाता है। छात्र हों या गृहस्थ हों या कोई भी सभी के लिए गणपति का संदेश स्पष्ट है ज्ञान प्राप्त करो, धैर्य रखो और कर्म करते रहो। यही सफलता और समृद्धि का मार्ग है।

भगवान श्री गणेश का स्वरूप अद्वैत वेदांत का प्रतिरूप है। उनका एकदंत यह कहता है कि सत्य एक है, भले ही उसकी अभिव्यक्ति अनेक रूपों में हो। उनका स्वरूप यह भी समझाता है कि आध्यात्मिकता और व्यवहारिकता का संगम ही पूर्णता है। बड़े सिर के साथ छोटा शरीर हमें सिखाता है कि ज्ञान विशाल हो, लेकिन जीवन सरल और संतुलित हो।

श्री गणेश उत्सव सांस्कृतिक और सामाजिक जागरण का पर्व है। स्वतंत्रता के पूजारी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी ने इसे राष्ट्रीय एकता और स्वतंत्रता संग्राम की चेतना जगाने का माध्यम बनाया। आज भी यह पर्व हमें समाज में भाईचारा, सहयोग और संस्कृति के संरक्षण की प्रेरणा देता है। सामूहिक श्री गणेश उत्सवों में जब गाँव और शहर एकत्र होते हैं, तो यह एकता और साझा जिम्मेदारी का जीवंत उदाहरण है।

आज का विश्व अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है, पर्यावरण संकट, आतंकवाद, हिंसा, मानसिक तनाव और परिवारों का विघटन। ऐसे समय में गणपति बप्पा का संदेश न केवल भारत के लिए, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए मार्गदर्शक है कि ज्ञान से अज्ञान का नाश हो; सत्य से असत्य का अंधकार मिटे; प्रेम और सहयोग से समाज एक हो; सतत जीवनशैली से पृथ्वी सुरक्षित बने। यदि हम श्री गणेश जी की शिक्षाओं पर अमल करे तो व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और वैश्विक सभी स्तरों पर शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भगवान श्री गणेश जी ज्ञान, विवेक, और विघ्न-विनाश के प्रतीक हैं। गणेश चतुर्थी हमारे जीवन में शुभारंभ और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। यह पर्व प्रकृति से जुड़ाव और संरक्षण की चेतना भी देता है। पारंपरिक रूप से मिट्टी और प्राकृतिक रंगों से बनी गणेश मूर्तियाँ पर्यावरण के अनुकूल थीं। आज हमें पुनः उसी मार्ग पर चलना होगा, प्राकृतिक मूर्तियाँ अपनाएं, जल स्रोतों की रक्षा करें।

स्वामी जी ने कहा कि श्री गणेश चतुर्थी केवल उत्सव नहीं, एक आत्म-जागरण का उत्सव है। स्वयं के विकारों से लड़ना भी एक तपस्या है। आइए इस वर्ष संकल्प लें कि प्रकृति-संरक्षण के साथ गणेश चतुर्थी मनाएं। हम विवेकपूर्ण निर्णय लें, हम हिंसा, लोभ और स्वार्थ से दूर रहें, हम समाज को जोड़ने और मानवता को एक करने में अपना योगदान दें।

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