मृदा, पंचतत्वों में से प्रमुख तत्व और आज सबसे अधिक संकट में
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December 5, 2025
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कमल अग्रवाल ( हरिद्वार) उत्तराखंड
ऋषिकेश / मृदा, वह धरती, जिस पर हमारी सभ्यता खड़ी है। वह आधार, जिससे अन्न, औषधि, वनस्पति, जल और जीवन की धारा सतत प्रवाहित होती है। पंचतत्वों में मृदा प्रमुख है, क्योंकि यह केवल धरती पर माटी का ढेला नहीं बल्कि यह संपूर्ण सृष्टि की धुरी है। परन्तु आज यह प्रदूषित हो रही है, दरक रही है, और हम उसे अनदेखा कर रहे हैं।
हम अपनी दैनिक गतिविधियों से धरती की गोद को खोखला कर रहे है। जिससे मानवता अस्वस्थ, असुरक्षित और अस्थिर होती जा रही है।। मृदा को प्रदूषित करना वास्तव में अपने जीवन को प्रदूषित करना है। आज आवश्यकता है कि हम इस सत्य को केवल सुनें नहीं, महसूस करें क्योंकि मृदा प्रदूषण, सभ्यता की जड़ों में घुसते जहर के सामन है।
आज रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, फैक्ट्रियों के कचरे, माइक्रोप्लास्टिक, सीवेज, और गैर-क्षयशील पदार्थों ने मिट्टी को बीमार कर दिया है। जो मिट्टी कभी जीवन देती थी, वह आज जहर उगलने पर मजबूर है।
मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीव जो धरती के अदृश्य देवदूत हैं तेजी से नष्ट हो रहे हैं। यही जीव मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं, पौधों को पोषण देते हैं और पृथ्वी के प्राकृतिक चक्र को संतुलित रखते हैं। इनके नष्ट होने का अर्थ है धरती के जीवन-तंत्र का धीमे-धीमे ध्वस्त होना है।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि मृदा, धरती का वह पवित्र आंचल हैं जिसमें जीवन की पहली धड़कन पलती है। पंचतत्वों में से एक, और जीवन के अस्तित्व के लिए सबसे मूलभूत आधार है। जिस मिट्टी से हमारा अन्न जन्म लेता है, औषधियाँ विकसित होती हैं और वनस्पति फलती-फूलती है, वही मिट्टी आज बीमार हो रही है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज मृदा प्रदूषण मानव सभ्यता के सामने खड़े सबसे बड़े पर्यावरणीय संकटों में से एक है। जब मिट्टी प्रदूषित होती है, तो केवल खेत नहीं, हमारे शरीर, पानी, वातावरण, स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और भविष्य सब खतरे में आ जाते हैं। यह प्रदूषण धीरे-धीरे, पर अत्यंत गहराई से जीवन को खोखला करता है, बिल्कुल उसी तरह जैसे दीमक मजबूत लकड़ी को चुपचाप खाती रहती है।
स्वामी जी ने कहा कि मृदा प्रदूषण का सबसे खतरनाक असर हमारी थाली पर पड़ता है। जो अनाज, सब्जियाँ, फल, दालें हमें ऊर्जा देने के लिए उगाई जाती हैं, वही अवशिष्ट रासायनिक पदार्थों से भरने लगती हैं। यह जहर सीधे हमारे शरीर में प्रवेश करता है और उसके दुष्परिणाम बेहद गंभीर होते हैं।
हम अक्सर समझते हैं कि बीमारियां हवा-दूषित या पानी-दूषित होने से होती है, पर सत्य यह है कि हमारी थाली में आने वाला भोजन मिट्टी के स्वास्थ्य का दर्पण है। मिट्टी केवल खाद्य का स्रोत नहीं यह पर्यावरण का आधार-स्तंभ है। जब मिट्टी प्रदूषित होती है, तो इसका असर पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ता है।
मिट्टी असल में पृथ्वी की सबसे बड़ी प्राकृतिक फिल्टर है। यह पानी को शुद्ध करती है, उसे धीरे-धीरे भूजल में भेजती है और जलचक्र को संतुलित रखती है। पर जब मिट्टी प्रदूषित होती है, तब रसायन और भारी धातुएँ भूजल में घुल जाती हैं नदियाँ और तालाब अपवाह के कारण दूषित हो जाते हैं। भूजल स्तर तो गिरता ही है, उसकी गुणवत्ता भी लगातार बिगड़ती है।
धरती की जड़ों में जब बीमारी फैलती है, तो सभ्यताएँ डगमगाने लगती हैं। मिट्टी को बचाना किसी एक सरकार, संस्था या किसान का काम नहीं यह मानवता का सामूहिक दायित्व है।
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